Tuesday, March 25, 2008
एक आदत तुमसे दिल लगाने की हो गयी,
एक आदत खूद्को दर्द पहुंचाने की हमे हो गयी,
एक अधूरी कहानी मेरी तुम्हारी न जाने कैसे बन गयी.
एक अंजना एहसास दिल पे चा रहा है,
एक अनचाहा रिश्ता जुड़ता जा रहा है.
कमबख्त इस दिल को कौन समझाए,
फासले हमारे बढ़ते जा रहे है,
हम है क दिल लगाये जा रहे है.
तुम्हारी एक मुलाकात को सपना बनाकर आंखो में बसा रखा है,
तुमसे दुबारा मिलने की उम्मीद को दिया बनके में जला रखा है.
तुम्हारे सांसो की गर्मी को आज भी महसूस करते हैं हम,
तुम्हारे साथ बिताये उन लम्हों को आज भी जिए जा रहे है हम.
इस दर्द को सहने की थो आदत थी हमे,
फिर भी क्यों ये दर्द तोड जा रही है हमे.
तुमसे वफ़ा की उम्मीद थो नही रखते,
ख़ुद बेवफा न हो जाए इस बात से इतना क्यों है डरते.
सालो बाद शायद फ़िर कही मिलेंगे,
अपनी इस अधूरी कहानी को पलट के देखेंगे,
और फिर से अपनी मंजिल की ओर चल देंगे.....
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2 comments:
bahot achha likha he
i like it
hi
how are you
i am alkesh modi from mehsana
my email is alkesh6248@yahoo.co.in
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