Wednesday, May 20, 2009

बम्बई

बम्बई, शहर है सपनो का,
पर नही अपनों का.
हर चेहरा बस एक चेहरा है यहाँ,
न देखो तो कोई मतलब नही,
गौर से देखो तो है ये और कोई.
हर चाह को दिल में लेके मुट्ठी में दबाके,
बस भागे जा रहे हैं,
किसी को रुक कर मुड़ कर देख ले इतना वक्त नहीं.
जीतने की बस होड़ है यहाँ,
क्षितिज से आगे आसमान के परे,
कैसे भी बस जाना है,
पंख हो न हो,
बस उड़ते जाना है.

बम्बई,शहर है हादसों का,
पर नही खौफ्फ़ का ,
हर दिन एक नई ताज़ा ख़बर,
कहीं खून तो कहीं बहते आंसुओं का सागर,
कभी दहशत से भरी काली रातें,
कभी बाढ़ में डूबता पूरा शहर.
जो बार बार आए वो मुसीबत है,
जो कभी न टूटे वो यहाँ की हिम्मत है,
बड़े बड़े नेताओं के वादे,
शतरंज क खिलाड़ी भी बहुत है,
मिटके भी फ़िर से खड़े होना,
बस यहीं की खासियत है.

बम्बई, शहर है शोर का
पर नही चैन का ,
रंगमंच पर हर दिन एक नया तमाशा है यहाँ,
अपने ही इच्छाओं में खो जाते हैं जहाँ.
हर पल कोई जीत का जश्न मनाता है,
तो कोई बस औरो क हाथो बिक के रह जाता है,
तिनका तिनका कर घरौंदा बनते हैं ,
तो कभी पैसो से दिवार सजाते हैं,
हर दिन एक नया अभिनेता जन्म लेता है,
और कहीं एक दम तोड़ देता है,
यहाँ क शान का नशा ही कुछ और है,
इसी में खुदको डुबोने का मज़ा ही कुछ और है.

बम्बई, ये शहर है अब मेरा,
पर नही मेरे डर का ,
हर डगर पे कुछ नया है,
खुदको को बदलके भी खुदको पाया है,
लाख बुराई हो भले यहाँ,
पर सबने बस गया है एक ही गान,
ज़रा हटके,ज़रा बचके,
ये है मुंबई मेरी जान.....

4 comments:

Anurag Gupta said...

Brilliant!! So true!! Keep up the gud work..

Gaurav Parashar said...

Amazing poem (partly cause it is in Hindi). But you strike the per say dark side of city throughout the poem, never the less the last paragraph ends in a high. The poem structure is good.

aritri said...

@ Anurag bhaiya-thanx...
@ gaurav- Thanx a lot...i see u lyk hindi...der are very less ppl who still love it.. :)

Anonymous said...

jo kabhie naa tute wo yahan ki himmat hai....BRAVO...kip it up...